सोनी आज स्कूल नही जाएगी, क्योंकि उसके मम्मी की तबीयत ठीक नही है। अगर वह आज स्कूल चली गई तो मंदिर परिसर में लगे चापाकल से पानी कौन भरेगा और घर के बर्तनों को मांजने के बाद उनमें पीने के पानी कौन रखेगा। एक गाय और उसके बछड़े को दोपहर में पानी कौन पिलाएगा । ऐसी ही असमंजस में दिख रही सोनी 6 वीं कक्षा में पढ़ती है। उसके साथ गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली उसी के मोहल्ले की कई लड़कियां जो कुछ उसकी सहपाठी सहेली भी है। पीठ पर बैग लटकाएं स्कूल जाने की पूरी तैयारी में हैं। उनमें से एक लड़की रोली पूछती है, सोनी बाल्टी लेकर कहां जा रही है। तुम्हारे घर पानी नहीं आ रहा है क्या। क्या नल खराब हो गया है। क्या अभी तक तुमने नहाया नही। स्कूल नही जाएगी क्या? जवाब में सोनी बस अपना सर हिलाती है हम्म। फिर रोली थोड़ी ऊंची आवाज में बोलती है अरे यार देर हो जाएंगे हम सब अगर तुमको नही जाना है तो मत जा हम तो जा रहे हैं। प्रार्थना की घंटी बजने से पहले अगर नहीं पहुंचे तो मैम आज फिर क्लास के बाहर पूरे एक घंटी खड़ा कराएगी। उन लडकियों में से दूसरी लड़की अंशु जिसका घर सोनी के घर से सटा है बोलती है ,हां हमलोगों के गली में 15 दिनों से नल का पानी नहीं आ रहा है। हनुमान मंदिर वाली गली के चौराहा पर पाइप फट गई थी जिसके चलते हम लोगों के गली में पानी अब नहीं आता। हम लोग मंदिर से पानी भरकर घर लाते हैं। पापा बोलते हैं कि इसको बनाने में बहुत पैसा लगेगा और दोबारा गली को तोड़कर नया पाइप भी बिछाना पड़ेगा। तब फिर से घर में पानी आएगा, लेकिन मैंने तो सुबह में ही पानी भर लिया था मम्मी के साथ जा कर। वहीं सोनी फिर जवाब देते हुए बताती है कि मैं आज स्कूल नहीं जाउंगी, क्योंकि मम्मी बीमार है और पापा ने मुझे बोला है कि स्कूल मत जा जाना, मंदिर से पानी भरकर गायों को पानी पिला देना और बर्तन मांज देना।
दरअसल सोनी ,अंशु जैसी अनेकों लड़कियां और महिलाओं की अनगिनत कहानियां है देश में जो अपने परिवार को शुद्ध पानी के लिए सदियों से घाट- घाट भटकती रहीं है। भले ही आज 21वीं सदी में सरकारें स्वच्छ पीने योग्य पानी को घर घर पहुंचाने का कई तरह के निश्चय कर जीत की ओर अग्रसर हैं , लेकिन अभी भी तमाम कोशिशों और संघर्षों के बीच टकराव भरे माहौल में एक बार ठीक होकर दोबारा बिगड़ने के बाद रख-रखाव और उसे निरंतर , सुचारू रूप से चला पाने में सरकारें गच्चा खाते हुए दिख रही हैं। यह बात अलग है कि जब कोई जनकल्याणकारी योजनाएं सरकार एक बार जमीन पर जनता के सामने रख देती है तो उसको सफल बनाने के लिए जनता का भी अपने स्तर से एक प्रकार का जवाबदेही तय माना जाता है। लेकिन सरकार और संबंधित विभाग एक बार परियोजना बनाकर दोबारा अपना मुंह मोड़ लें तो खुद अभावों में जी रही जनता अपनी जवाबदेही को कैसे तय करेंगी। कब तक सरकार, विभागों से संबंधित स्थानीय अधिकारियों के रिपोर्टों में सब कुछ चंगा सी पढ़ कर अपनी खुद की वाहवाही बटोरती रहेंगी।
इसके बावजूद सरकार हर घर नल हर घर जल की दावा तो अपने डंका के चोट पर करती है। इसे अपनी बड़ी उपलब्धि भी बताने से परहेज नहीं करती, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही बयां करती हैं। नगरवासी अदद एक बूंद को तरस रहे हैं। यह हाल है बिहार के कैमूर जिले के हाटा नगर पंचायत की , जहां केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के ऑफिशियल वेबसाइट पर दर्शाए गये आंकड़ों में 2100 परिवारों यानी 100 प्रतिशत घरों को हर घर नल जल योजना के तहत नल कनेक्शन से जोड़ दिया गया। 2016-17 में मुख्यमंत्री के सात संकल्प में से एक, इस योजना और 2019 में केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन के अंतर्गत गांव के हर गली- मोहल्लों और सभी वार्डों में जमीन के अंदर पाइप बिछने लगा तो लोगों में एक उम्मीद सी जगी की अब पानी के लिए दर दर भटकना नहीं पड़ेगा। दूर जाकर किसी हैंडपंप से पानी लाने में कड़ी मेहनत नही करना पड़ेगा। अब भरी दोपहरी , शाम हो या रात जब नल अपने घर में लग जाएगा तब कभी भी पानी भरा जा सकता है । बूंद - बूंद को भटने के लिए घर की महिलाओं को घर से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। हर घर पाइप बिछ जाने और नल लग जानें से एक - एक बूंद के लिए तरस जाने वालें नगरवासियों के भाग्य का दरवाजा खुला जो पहले सार्वजनिक जगहों जैसे सरकारी स्कूल, मंदिर- मस्जिद के परिसरों में लगे चापाकल से शुद्ध पीने के पानी भरने के लिए विवस थे। समय परिवर्तन के साथ- साथ और नई- नई तकनीकों और मशीनों के सहारे सरकार शुद्ध पेयजल मुहैया कराने को संकल्पित तो दिखी, लेकिन फटे पाइप से लीक होते हुए पानी, गर्मी के दिनों में गलियों में बरसात के कीचड़ जैसे स्थिति को उजागर करते हुए अनावश्यक दिख जाएंगे और अगर इन पाइप को फटे हुए महीनों बित गये हो और गली के चौराहों पर पानी जमा हो गया हो तो लोग इसे बंद करने के लिए मजबूर है , क्योंकि ऐसे में शुद्ध पेयजल कार्यक्रम अब अशुद्ध होने के कगार पर पहुंच जाता है। फटे पाइप के सहारे गलियों में जमा कीचड़ से होकर पानी जब बहता है तो नलों तक पंहुचते -पंहुचते गंदे पानी पीने के अयोग्य हो चुका होता है, लेकिन इस तरह के समस्याओं का हल यह नहीं है कि इसको मरम्मत कराने की कोशिश न की जाए। बिना प्रयास किए ही इसे बंद कर दिया जाए। एक तरफ जहां लिकेज हो रहे पाइप इस योजना के बदहाली के सबूत पेश कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ नल लग तो गया है, लेकिन जल बहुत मुश्किल से उन घरों में पहुंच पाता है जहां, पानी टंकी की दूरी बहुत अधिक हो। वहां दूर तक पानी पहुंचता भी है तो इतने कम मात्रा में नल से पानी निकलता है कि एक बाल्टी भरने में कई कई मिनट लग जाते हैं। फिलहाल हाटा के वार्ड नंबर 9 में सभी घरों में तो नल जल की पाइपे लगभग 2021 में बिछा दी गई थीं। महीनों तक पानी निरंतर सभी घरों में जाता रहा , लेकिन कुछ दिनों बाद समर्सिबल मोटर फूंक जानें के बाद कई महीनों तक नल से जल पहुंचाने का कार्यक्रम ठप्प हो गया। उसकी देख रेख कर रहें पीयूष और हाटा नगरवासियों ने कई बार नगर के चेयरमेन और वार्ड सदस्यों से इसकी मरम्मत के लिए गुहार लगाई और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के अधिकारियों को पत्र लिख कर भेजने के बाद विभाग ने फूंक चुके मोटर को बदल कर नए मोटर लगाने का आश्वासन दिया गया, लेकिन कई दिनों तक नगरवासी आश्वासन के सहारे इंतजार करते रहे कि मोटर ठीक हो जाने के बाद दोबारा पानी हमारे घरों तक खुद चल के आएगा। हमें पानी के लिए अब भटकना नहीं पड़ेगा। इस बार तो 6 महीने दिनों बाद मोटर फूंका है , लेकिन बीच बीच में पक्की सड़कों को छेद कर खराब क्वॉलिटी के पाइप डालने के कारण हर दूसरे गली में लीक होते हुए पानी के पाइप इस बात के गवाही दे जाएंगे कि हर घर नल जल योजना से जलापूर्ति के नाम पर जो खानापूर्ति हुई है इसके जिम्मेदार सरकार ही नही, बल्कि खराब क्वॉलिटी के सामानों और ठेकेदारों की मिली भगत भी है।
हालांकि वार्ड नंबर 9 के निवासी मनोज कुमार बताते है कि शुरू में यह कार्यक्रम सफल रहा, लेकिन अब यह पूरी तरह से फेल हो चुका है , क्योंकि कहीं पाइप लीक कर जाता है तो कहीं मोटर फूंक जाता है। टंकी भी फट चुकी है और उसके चलते कई बार टंकी को आधा ही भरा जाता है ताकि उससे पानी बाहर भरने पर और फट जाने का खतरा रहता है।
पूछे जाने पर मनोज बताते है कि दरखास्त दिया गया था चेयरमैन को और उन्होंने बोला है कि इसे जल्द बदल नया टंकी लगाया जाएगा पर अभी तक केवल वादा ही किया गया । करीब लंबे समय से बंद पड़े हर घर तक जलापूर्ति के लिए लगे नल अब सिर्फ लोगों के घरों के शोभा बढ़ा रहे हैं। नल है पर जल का पता नही। यह सरकारी आंकड़ों और सफल योजनाओं में तो अपना नाम दर्ज करा चुका है, लेकिन धरातल पर इस योजना की तहकीकात में पाया गया कि यह योजना जीवों के सबसे पहली और आवश्यक चीजों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाला जल जिसके अभाव में कोई भी जीवन संभव नहीं है। अब यह जनता की उम्मीदों पर पानी फेरने जैसी स्थिति में धीरे -धीरे बदलते दिख रहा है। अब इस योजना के प्रति सरकार का उदासीन रवैया दिखने लगा है। जल जीवन मिशन कार्यों का जायजा लेने के लिए शुरुआती दिनों में कभी सरकारी अधिकारी आ जाते थे , लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है ।
गौरतलब है कि जल जीवन मिशन का पहला लक्ष्य है 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (एफएचटीसी) के माध्यम से पूरे देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को प्रति व्यक्ति रोजाना 55 लीटर स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना । मंत्रालय ने अपने आंकड़ों में बताया है कि 2019 में जहां 3.3 करोड़ ग्रामीण घरों में नल जल का कनेक्शन था वह 2024 में 75 प्रतिशत बढ़कर हो गया है। देश के दस ऐसे राज्य है जो 100 प्रतिशत घरों में नल से जल पंहुचाने में सफल हो सकें है । इसके बाद बिहार में 96 प्रतिशत से अधिक घरों को नल से जल पहुंच रहा है।
बहरहाल आंकड़े और सरकारी कागजों में यह योजना भले ही अन्य सरकारी योजनाओं को राह दिखा रही हो, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। अब प्रश्न उठता है कि ' जल ही जीवन' लाया गया था ऐसा मिशन, परंतु अभी तक क्यों नहीं हुआ सॉल्यूशन !
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