नन्हीं खुशी के जीवन पर उठता प्रश्न: इलाज को दर दर भटक रहा परिवार

नन्हीं खुशी के जीवन पर उठता प्रश्न: इलाज को दर दर भटक रहा परिवार

बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाला एक ग़रीब परिवार,अपने साथ 4 वर्षीय बच्ची खुशी (परिवर्तित नाम) है ,को लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के हार्ट विभाग के राजकुमारी अमृत कौर ओपीडी के बाहर बेंच पर बैठ कर रो रहे थे। पूछे जाने पर पता चलता है कि बच्ची के पापा सुनील कुमार( परिवर्तित नाम ) बताते हैं कि हमारी बच्ची के दिल में छेद है (जन्मजात हृदय रोग) , जिसे मेडिकल भाषा में केंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट्स' कहा जाता है। इस मासूम को 4 साल से यह समस्या है।इसका इलाज पहले क्यों नही कराया पूछने पर सुनील बताते हैं कि शुरू में हमने इसका इलाज सीतामढ़ी के एक प्राइवेट अस्पताल में कराया था ,लेकिन डाक्टरों ने दवाई देकर कहा बच्ची ठीक हो जाएगी और कुछ महीने तक उसको आराम मिला, परंतु उसके कुछ महीने के बाद बार- बार यह समस्या होने लगी। फिर इलाज कराने हमलोग अपने ही प्रखंड के प्राइमरी अस्पताल गए जहां पर डाक्टरों ने बताया कि बच्ची के दिल में छेद है और इसके इलाज के लिए किसी बड़े अस्पताल ले जाना होगा। हालांकि सुनील के एक रिश्तेदार ने इस घातक बीमारी के बारे में जब सुना तो उन्होंने इलाज के लिए दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कराने की सलाह दी। मुख्य रूप से ईट भट्ठा पर मज़दूरी करने वाले सुनील और उनका परिवार दिल्ली के एम्स में अपने बच्ची को लेकर पहली बार नवंबर 2022 में आते हैं। जहां एम्स के डॉक्टर ऑपरेशन के लिए 2026 के दिसंबर में लगभग 4 साल से अधिक समय के बाद बुलाते हैं।

कुछ महीने बाद सीतामढ़ी के सांसद से साइन कराकर एक आवेदन पत्र और डॉक्टरों से फोन पर बातकर अप्वाइंटमेंट देने का आश्वासन लेकर फिर सुनील एम्स आते हैं। इस आस में की इस बार सांसद जी के आवेदन पत्र को देखकर डॉक्टर 4 साल बाद के बजाय कुछ दिनों बाद ही ऑपरेशन कर देगे, लेकिन यहां सुनील को निराशा ही हाथ लगती है। एम्स में कोई प्रतिकिया नहीं आती है इसके आलावा कि तुमको तो 2026 में बुलाया गया था, तुम अभी क्यों चले आए ? खुशी की मम्मी रोते हुए बताती है कि हम प्राइवेट अस्पताल में इलाज करा भी नही सकते, क्योंकी हमारे पास इतने पैसे और जमीन भी नहीं है कि उससे बेचकर अपने बच्ची के जीवन की रक्षा कर सकें।

नन्हीं खुशी की कहानी बताती है कि सरकार की कई योजनाएं भले ही हों, लेकिन गरीब परिवारों तक उनका लाभ नहीं पहुंच रहा है। ऐसे में कई मासूम बच्चे इलाज के अभाव में जिंदगी से जंग लड़ रहे हैं।

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